Wednesday 19 December 2012


स्त्री होना ही सर्व नाश का कारण बना शायद
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उस बच्ची की आंते निकाल दी गयी आपरेशन  कर के
ताकि उन में फ़ैल चुका 'गैंगरीन ' न ले ले उस की जान
पर जान बची कहाँ है उस में ,वो तो लाश भर है बस अब
उन अरमानों की लाश ,जो उस के माता पिता ने देखे होगे
उसे पराये शहर में पढने भेजने से पहले .......
उस के खुद के सपनों की भी लाश है वो ,वो चाहती थी
कंधे से कन्धा मिला कर चलना इस पुरुष प्रधान समाज में !
किस बात की सजा मिली  है  उसे ,  एक   स्त्री   होने    की ?
कुछ नर पिशाचों ने उस की अस्मत को कुचल कर
उस के जिस्म को बेरहमी से खत्म करने की कोशिश की क्यूँ??
क्यूँ की उन के लिए वो महज़ एक भोग की वस्तु भर थी
नहीं वो भोग-वस्तु नहीं थी वो इस समाज का एक अहम हिस्सा थी
वो किसी की बहन थी बेटी थी वो एक पत्नी और माँ भी हो सकती थी
यदि उस के शरीर को यूँ कुचल न दिया गया होता बेरहमी से
कितना जी पायेगी वो आधे अधूरे शरीर के साथ?
जितना भी जिए पर उस का जीवन सिर्फ एक प्रश्न चिन्ह  पर ही अटका रहेगा सदा
के क्या गलती थी मेरी जो ये सब हुआ ?महज़ स्त्री होना ही तो इस सर्व नाश का कारण रहा है शायद
कन्या भ्रूण हत्या ,बलात्कार ,दहेज़ के लिए उत्पीडन ,क्या ये सब ही  स्त्री की नियति है ????
जरुर है आत्म मंथन की इस समाज को ,तलाशने होने इस प्रश्न -चिन्ह के जवाब
सिखाने होगे संस्कार अपने बेटों को भाइयों को ,संस्कार ही एक इंसान को इंसान बने रहने में मदद करते है
वरना पशुता की तरफ गया मनुष्य क्या कर  सकता है ये हम देख ही रहे है

Tuesday 18 December 2012

फांसी दो बलात्कारियों को !


बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसकी जितनी भी सज़ा दी जाए कम है !
इस तरह की घटनाएँ किसी की भी बहन या बेटी के साथ हो सकती है 
दिल्ली में अभी हाल ही में फिर इस तरह की घटना का होना बताता है के 
इन लोगों पर कड़ी कारवाही जब तक नहीं की जाएगी तब तक ऐसे लोगों में 
भय उत्पन्न नहीं होगा और ऐसी घटनाएँ कम नहीं होगी ! सरकार को इस 
दिशा में कड़े कदम उठाने चाहिए और फांसी  से कम सज़ा नहीं होनी चाहिए 
ऐसे लोगों को, किन्तु हम सब समाज का एक हिस्सा है और इस नाते हमे 
अपने कर्तव्य को नहीं भूलना चाहिए इन लोगों को समाज से बाहर किया जाना चाहिए 
इन सब के परिवारों पर भी समाज का दबाव होना चाहिए के ऐसे लोगों के लिए परिवार 
खुद सज़ा की मांग करे ,मैं सब ही साथियों से अपील करती हूँ के आइये हम सब भी मिल कर 
बलात्कारियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करे ,पुरे एक सप्ताह तक सिर्फ इस विषय पर ही अपने लेख/कवितायेँ   या जो भी लिखना चाहे केवल इस ही विषय पर लिखे ,हम सब के घर में भी मासूम बेटियाँ और बहने है 
जो बहन इस दरिंदगी का शिकार हुई है क्या वो हमारी बहन या बेटी सी नहीं है ?यदि आप हो ऐसा लगता है तो जरुर इस अभियान में साथ देगें 

Sunday 2 December 2012

जीवन                                

स्वार्थी लोग
मतलब के रिश्ते
ये ही है  जीवन?

चलायमान  मन
भटकता  फिरे
तकता  रहे औरों
का जीवन

कड़ी मेहनत
तन पे  चिथड़े
दो सुखी रोटी
ये कैसा जीवन ?

रेशम है  तन पर
थाली में पकवान
असंतुष्ट है फिर भी
मन बेईमान,चाहे हमेशा
और उम्दा जीवन !




अवन्ती सिंह