तुम कब तक नकारते रहोगे मुझे
मेरे उस अस्तित्व को ,जो कब का
तुम में विलीन हो चूका है ......
और तुम मेरे होने ,न होने को सिर्फ
मेरे जिस्म की उपस्तिथि से आँक रहे हो
झांको खुद में ,और देखो ,मैं तो तुम्हारे
हृदय के सिघासन पर विराजमान हूँ
और तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व ने स्वीकार
कर लिया है मेरे साम्राज्य को ....
सिवा तुम्हारे..........
मेरे उस अस्तित्व को ,जो कब का
तुम में विलीन हो चूका है ......
और तुम मेरे होने ,न होने को सिर्फ
मेरे जिस्म की उपस्तिथि से आँक रहे हो
झांको खुद में ,और देखो ,मैं तो तुम्हारे
हृदय के सिघासन पर विराजमान हूँ
और तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व ने स्वीकार
कर लिया है मेरे साम्राज्य को ....
सिवा तुम्हारे..........
(अवन्ती सिंह)