Tuesday 14 February 2012

जिंदगी

 

आज फिर तेरे एक शुष्क पहलु को  देखा  जिंदगी!
अश्रु जल आँखों में  था,  बहने  से  रोका  जिंदगी !!

क्यूँ हर इन्सान तुझे अच्छा लगे है रोता,  जिंदगी !
देती क्यूँ हर इंसा की उम्मीद को तू धोखा ,जिंदगी!!

क्यों तू इतनी कठोर है ,पत्थर  सी  है  तू   जिंदगी!
क्यों कोई सनेह अंकुर तुझ में ना फुटा    जिंदगी!! 

हर पल   हर  छन  दर्द  तू  सबको ही देती जा रही!
काश के   तेरा   कोई   अपना  भी  रोता,  जिंदगी!! 

बन  कर  कराल  कालिका, तू  मौत का नृत्य करे!
कोई  शिव  आकर , काश तुझे रोक लेता जिंदगी !!