Monday 16 March 2015

हमारे अन्नदाता की खराब हालत के कुछ जिम्मेदार हम भी है ?

हमारा जीवन किसानों के साथ परोक्ष रूप से ही नहीं प्रत्यक्ष में भी जुडा हुआ है ,हमारी रसोई में अन्न ,सब्जी फल पहुचता किसी भी माध्यम से हो किन्तु उसे जीवन देने वाला तो किसान ही है यदि किसान न हो तो हम कहाँ से लायेगे ये सब ? पर हम लोग क्या अपने अन्नदाता किसान के बारे में जरा भी सवेदन शील है?  आज का किसान कितना परेशान है क्या आप ये जानते है ? आइये पहले ये ही समझ लें
 किसान , अन्नदाता भी कहा जाता है उसकी हालत और इज्जत ५० और ६० के दशक में आज से बहुत बेहतर थी ,आज़ादी की लड़ाई में भी सब से  अधिक आर्थिक योगदान  भी किसानों का ही था ! आज़ादी के बाद सब के हालत सुधरे किन्तु किसान को तो मानो हाशिये पर ही धकेल दिया गया !  किसान जो फसल अपने खून पसीने से सींचता है उस का मूल्य वो स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ! उसे जो मूल्य मिलता है उसे से उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है के अगली फसल के लिए उसकी जेब में पैसे ही नहीं होते और उसे क़र्ज़ लेना पड़ता है ! उसके लिए निर्धारित यूरिया / खाद / कीटनाशक जिन पर सब्सिटी   मिलती है उस तक न पहुँच कर बाजार में ब्लैक में बेच दिया जाता है और किसान उसका दोगुना मूल्य चूका कर अपने खेतों में डालता है ,महंगे दाम पर बीज मिलते है ,जैसे तैसे बेचारा किसान अपनी फसल को बोता  है और जब उसे  लगता है अब कुछ ही दिनों में फसल पकने वाली है तो अक्सर बेमौसम बरसात /आंधी /तूफान /बाढ़ /और सूखे के कारण वो कभी आधी तो कभी पूरी फसल खो देता है ! सरकार की तरफ से घोषित  सहायता राशि उस तक पहुंच ही नहीं पाती ! वो असहाय है कुछ कर नहीं पाता ,  पर हम लोग लोग तो इतने असहाय नहीं है ,जिसके हाथ का अन्न खाकर जीवित है ,उसकी मुसीबत में हम उस के कभी काम आए है ? हम लोगों के पास माध्यम है सोशल मिडिया यदि हम लोग चाहें तो किसी भी मुद्दे को इतना उठा सकते है के सरकार मजबूर हो जाती है उस  मुद्दे पर काम करने के लिए ! हम कितना सोचते है इस विषय पर कितना लिखते है ? क्या ऐसा नहीं हो सकता के इस विषय पर हम सब साथ मिलकर लिखें? कोई ब्लॉग या कोई पेज़ ऐसा बनाएं जिस पर गंभीरता से लिखा जाएँ और ऐसे लिखा जाये के सोई सरक़ार  की आँखें खुल जाएँ ,किसानों से उनकी मर्ज़ी के बिना ज़मीन लेना ये विषय भी उठाना चाहिए ,विकास इतना भी नहीं हो जाना चाहिए के खेती की ज़मीन खत्म हो जाएँ और हम और देशों से अनाज माँगा कर खाएं,प्लीज़ इस पर गंभीरता से सोचें


Monday 2 March 2015

कर्पूर  या कपूर
हम भारतीय इस नाम से भली भांति परिचित है ,पूजा में कपूर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है
इसे कई तरह की दवाइयों में ,बाम इत्यादि में भी काफी   इस्तेमाल किया जाता है!

ये जीवाणुओं का नाश करने में काफी कारगर होता है ,जुकाम  या वायरल जो की हवा या छींकने -खाँसने से फैलते है उन्हें समाप्त करने में इसकी सहायता ली जा सकती है ! आज कल फैल रहे स्वाइन फ्लू में भी इसका उपयोग काफी हद तक उपयोगी है काफी लोग कर्पूर की छोटी से पोटली बनाकर साथ रखते है और भीड़भाड़ वाले इलाके में इसे सूंघते रहते है ,यदि  कीटाणु हमारी साँसों तक पहुंच भी जाता है तो इसकी गंघ उसे मार डालती है ,बच्चों के स्कुल बैग पर भी मलमल के कपड़े की पोटली बनाकर उसमे कुछ टुकड़े कर्पूर रख दें,जिससे के उसके आस-पास इसकी गन्ध फैलती रहे ,ऑफिस जाने वाले लोग भी अपने साथ ये छोटी से पोटली  लेकर जाये अपनी मेज़ पर या आस पास किसी भी स्थान पर रख दे  , अपने घर के दरवाजे पर भी ऐसी पोटली बंधने से घर में कीटाणु का प्रवेश  कम होगा !

मच्छर नाशक

मच्छर को भगाने में भी इसका उपयोग काफी सहायक होता है ,गर्म पानी में इसकी एक या २ टिकिया हर एक घंटे में डालते रहे मच्छर काफी कम आयेगे एयर इसकी महक नुकसान भी नहीं करेगी !

अधिक मात्रा में कर्पूर सूंघने से नींद या हलकी बेहोशी भी आ सकती है इसलिए इसका इस्तेमाल सावधानी से करें ! पूजा का कपूर या देशी कपूर ही सूंघने में इस्तेमाल करें कपड़ों में रखने वाला कपूर न सूंघे उसे घर में रखा जा सकता है